स्वच्छ भारत

08 अगस्त 2014

यह देखकर बहुत खुशी हुई कि 33,000 से ज्यादा लोग मेरी सरकार (माय गोव) वेबसाइट MyGov.in. पर बनाए गए समूह 'स्वच्छ भारत' में शामिल हुए। समूह के सदस्यों के व्यावहारिक सुझाव यह सुनिश्चित करते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक माननीय प्रधानमंत्री के 'स्वच्छ भारत' का सपना पूर्ण हो जाएगा।

इस समूह के सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है एवं सारे सदस्यों ने भारत को स्वच्छ बनाने के लिए कई तरीके सुझाएँ हैं। क्या शहरी और ग्रामीण सफाई के मुद्दों को अलग ढंग से हल किया जाना चाहिए एवं क्या सफाई से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान एकल दृष्टिकोण अपनाकर किया जा सकता है? उपरोक्त विषय पर चर्चा करते हुए निम्नलिखित उपायों का सुझाव दिया गया है जिन्हें क्रियान्वित करना आवश्यक है :

  1. शहरों में एक निश्चित दूरी पर कूड़ेदान लगाये जाने चाहिए। ऐसे शौचालय और हाथ-मुंह धोने के लिए कमरे की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए जिनका प्रयोग एक निर्धारित मूल्य चुकाने के बाद किया जा सकता है।
  2. कचरा फ़ैलाने वाले व्यक्तियों पर दंड लगाये जाने चाहिए एवं लगातार इस कार्य के लिए पकड़े जाने पर उन्हें सामाजिक केन्द्र पर अपनी नि:शुल्क सेवाएं देने के लिए भेजा जाना चाहिए।
  3. औद्योगिक गृहों सहित उन सभी लोगों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए जो अपने आसपास की जगह को साफ़-सुथरा रखते हैं।
  4. ग्रामीण क्षेत्रों का अधिकांश कचरा विघटित किया जा सकता है। इसे खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। शहरी क्षेत्रों में सूखे और गीले कचरे को अलग किया जाना चाहिए।
  5. मशहूर हस्तियों और टीवी विज्ञापनों का उपयोग सफाई के बारे में लोगों को शिक्षित करने और अपने आसपास की जगह को साफ़-सुथरा रखने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए किया जाए।

हाथ से मैला ढ़ोने की प्रक्रिया को रोकने के लिए एक कानून पारित करने के सुझाव दिए गए। नगर निगमों को इसके विकल्पों के बारे में बताया जाना चाहिए और नियम तोड़ने पर भारी जुर्माना लगाये जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। एक अन्य सुझाव था कि हरित शौचालय के लिए प्रतियोगिता की जानी चाहिए। कई सदस्यों ने कई बार यह भी सुझाव दिए कि नगर ​​निगम के पास साफ करने की मशीन है लेकिन वे इसकी उपेक्षा कर हाथ से सफाई करने की प्रक्रिया को जारी रखते हैं। सदस्यों ने इसे जल्द-से-जल्द रोकने का सुझाव दिया है। सदस्यों ने रेल में जैव-शौचालयों के निर्माण और गांवों में सामुदायिक शौचालय बनाने का भी सुझाव दिया। हालांकि, ज्यादातर सदस्यों का मत था कि मैला ढ़ोने की कुप्रथा को केवल लोगों को शिक्षित और प्रेरित करके ही रोकी जा सकती है।

सफाई पर विशेष ध्यान देते हुए महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने के लिए प्राप्त सुझावों पर निम्नलिखित टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं :

  1. प्रदाताओं और उपयोगकर्ताओं को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ शहर / जिला स्तर पर अपशिष्ट पुनर्चक्रण संयंत्र बनाए जाएँ।
  2. जलाए जाने का प्रयोग करें: कचरे को जलाना इसे ऊर्जा में परिवर्तित करने का एक बढ़िया तरीका है। यह कचरे की मात्रा को कम कर देता है और पर्यावरण को स्वच्छ बनाता है।
  3. जैविक अपशिष्ट को भूमि के अन्दर डालने पर प्रतिबंध लगाया जाए।
  4. अस्पताल एवं होटल समेत सभी वाणिज्यिक इकाइयों को खुद से एक विशेष प्रणाली बनाने के लिए कहा जाए ताकि वहां का कचरा सीधे ठोस अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों में डाला जा सके।
  5. केवल विघटित न हो सकने वाले अपशिष्ट पदार्थों के लिए और अधिक कूड़ेदान लगाये जाएँ। विघटित हो सकने वाले अपशिष्ट को संग्रह करने वाले एजेंट को देना अनिवार्य किया जाए और सार्वजनिक स्थलों पर कचरा फ़ैलाने पर प्रतिबंध लगाया जाए।
  6. ठोस कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीक विकसित की जाएँ। जागरूकता अभियान के लिए स्कूली बच्चों और गैर-सरकारी संगठनों को शामिल किया जाए।

सदस्यों को सौंपे गए रोचक कार्यों पर सदस्यों से अद्भुत प्रतिक्रिया मिली है सौंपे गए कार्य निम्न हैं :

  1. विभिन्न देशों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले 10 वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों की पहचान करें जिससे वहां के नागरिकों के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया।
  2. एक मध्याह्न भोजन रसोई में जाएँ और सफाई मानकों का आकलन करें। वहां सफाई में सुधार की गुंजाइश पर एक रिपोर्ट दें।
  3. अपनी कॉलोनी या इलाके में एक सफाई अभियान का आयोजन करें।
  4. किसी विशेष क्षेत्र या इलाके की फोटो साझा करें जो यह दिखाता हो कि वे सफाई के मामले में पहले कैसे थे एवं अब कैसे हैं।
  5. ऐसे 50 शहरों और 150 नगरों की पहचान करें जहाँ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और अपशिष्ट जल सुधार पहल के लिए पायलट परीक्षण किया जा सकता है एवं कुछ सुझाव दें जिससे ये पहल व्यावहारिक स्तर पर कार्यान्वित किये जा सकते हैं।
  6. ऐसे पीपीपी मॉडल का सुझाव दें जो शहरों को कचरा मुक्त बनाने के लिए अपनाया जा सकता है।
  7. गरीबों के लिए शहरों और गांवों में उचित शौचालय का निर्माण करने और यह सुविधा बनाए रखने के लिए एक नीतिगत ढांचा सुझाएँ।

समूह में सबसे ज्यादा गतिविधियाँ वहां होती हैं जहाँ सदस्य स्कूलों का दौरा करने के बाद अपनी टिप्पणियां देते हैं एवं वहां मध्याह्न भोजन के लिए अपनाये जाने वाले स्वच्छता मानकों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। जब दो सदस्यों ने सरकारी स्कूलों का दौरा किया तो जरा देखें उनका यह अनुभव कैसा रहा :

  1. मैंने बरौत, हंडिया, इलाहबाद के एक सरकारी स्कूल का दौरा किया। जब मैं वहां के रसोईघर में गया तो मैं पूरी तरह से चौंक गया। रसोईघर की हालत बहुत खराब थी। यहां तक ​​कि वहां काम करने वाली महिलाएं ठीक से बर्तन भी नहीं साफ़ करती हैं। पता नहीं, वहां के छात्र इसमें कैसे खाते हैं? रसोई घर की स्थिति ऐसी लगती है जैसे यह किसी कुत्ते या गंदे जानवरों के लिए हो। रसोई का प्रभार उस गांव का प्रधान के पास था। अब मैं उन छोटे बच्चों के लिए केवल प्रार्थना कर सकता हूँ कि भगवान उनकी रक्षा करे!
  2. मैंने चेन्नई के विरुगमबक्कम में एक मध्याह्न भोजन रसोईघर का दौरा किया। वहां अच्छे मापदंड अपनाये गए हैं। वहां की सफाई अत्यधिक प्रशंसनीय है। कम लागत पर सामान उपलब्ध कराया जा रहा है। यहां भाप पर खाना पकाया जाता है। अच्छी खाद्य वस्तुएं यहाँ उपलब्ध हैं। यहाँ शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। मैं इस योजना को पूरे भारत में अपनाये जाने का सुझाव देता हूँ।

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