हमारे पारंपरिक ज्ञान और पद्धति के विषय में समाज में विश्वास पैदा करने के लिए अपने विचार साझा करें

Share inputs to instil confidence in society about our traditional knowledge and practices
आरंभ करने की तिथि :
Mar 03, 2022
अंतिम तिथि :
Aug 31, 2022
23:45 PM IST (GMT +5.30 Hrs)
प्रस्तुतियाँ समाप्त हो चुके

भारत में जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी प्रथाओं/पद्धतियों और ज्ञान ...

भारत में जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी प्रथाओं/पद्धतियों और ज्ञान के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी एक समृद्ध वैज्ञानिक विरासत है। भारत का पारंपरिक ज्ञान विभिन्न रूपों में उपलब्ध है जैसे कि शास्त्रीय ग्रंथ, पांडुलिपियां और/या मौखिक संचार के रूप में जो कि हजारों वर्षों से चला आ रहा है। यह बहुमूल्य ज्ञान अक्सर हमारे दैनिक क्रिया-कलापों का भी हिस्सा है। कुछ पारंपरिक पद्धतियों से संबंधित ज्ञान धारकों की आजीविका के साधन हैं। हमारी पारंपरिक पद्धतियां मनुष्य की आवश्यकताओं और प्रकृति के बीच तालमेल बनाये हैं जो कि अक्सर स्थानीय संदर्भ में मनुष्य के संसाधनों और आवश्यकताओं में संतुलन बनाये रखती हैं। हालाँकि, समय के साथ, भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियाँ तेजी से नष्ट हो रही हैं, और हमारा राष्ट्र हमारे पारंपरिक ज्ञान के प्रति लोगों के विश्वास में गिरावट भी देख रहा है। गैर-भारतीय संस्कृतियों की नकल करने और हमारी परंपराओं का तिरस्कार करने के लिए कुछ लोगों का नासमझ रवैया एक गंभीर चिंता का विषय है। यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक विरासत किसी भी देश के विकास और प्रगति का एक अभिन्न अंग है। यह आवश्यक है कि देश में हमारी वैज्ञानिक विरासत की एक मजबूत आधारशिला बनाने हेतु संबंधित हितधारक आगे आयें। एक जागरूक और संतुलित समाज ही देश को आगे बढ़ा सकता है।

हमारे माननीय प्रधान मंत्री और सीएसआईआर सोसाइटी के अध्यक्ष, श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) देश भर से पारंपरिक ज्ञान संबंधित भागीदारों के साथ सहयोग करने और इस राष्ट्रीय पहल को लागू करने के प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। भारत के पारंपरिक ज्ञान को समाज तक पहुँचाने के लिए सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-निस्पर) इस राष्ट्रीय पहल “स्वस्तिक-वैज्ञानिक रूप से मान्य सामाजिक पारंपरिक ज्ञान” को लागू करने वाला नोडल संस्थान है।

इस पहल का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक रूप से मान्य पारंपरिक पद्धति/कार्यप्रणाली का संरक्षण करना और साथ ही हमारे पारंपरिक ज्ञान/पद्धति के वैज्ञानिक मूल्यों के बारे में समाज में विश्वास पैदा करना है

हम अपने पारंपरिक ज्ञान और पद्धतियों के विषय में समाज में विश्वास कैसे पैदा करें, इस पर शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, विषय-विशेषज्ञों, छात्रों, गैर-सरकारी संगठनों और जनता के सुझावों को हम आमंत्रित करते हैं। यह हमारे पारंपरिक ज्ञान और पद्धतियों के प्रति विज्ञान-वैज्ञानिक-समाज के जुड़ाव को प्रोत्साहित करके वैज्ञानिक सोच विकसित करने और समाज में विश्वास पैदा करने के हमारे उद्देश्य को पूरा करने में हमारी मदद करेगा।

सीएसआईआर-निस्पर की स्वस्तिक पहल के विषय में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।यहां क्लिक करें। (PDF 1519 KB)

या इस वेबसाइट पर जाएं -https://niscpr.res.in/nationalmission/svastik

आप अपने पारम्परिक ज्ञान तथा कार्य कार्यप्रणाली के बारे कितना जानते हैं? MyGov प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में भाग लें और भारत के पारम्परिक ज्ञान के बारे में अपने ज्ञान को परखें। Quiz Link: https://quiz.mygov.in/quiz/quiz-on-indian-traditional-knowledge/

अपने विचार और सुझाव साझा करने की अंतिम तिथि: 31 अगस्त 2022

फिर से कायम कर देना
2022 सबमिशन दिखा रहा है
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Anupam Anoop 9 महीने 4 दिन पहले

भारतीय संस्कार और संस्कृति आदि अनादि काल से पूर्ण वैज्ञानिक व प्राकृतिक सिद्धांतो से परिपूर्ण रहे है।जिनका वर्णन वर्तमान मे विभिन्न स्वरूप मे देखने को मिलता है।और हमारी प्राचीन बौद्धिकता का एक छोटा परन्तु बेहद महत्वपूर्ण उदाहरण देखना हो तो सिर्फ हम अपनी थाली मे परोसे भोजन के तत्वो से अंदाज लगा सकते है जहा हम जो खाते है उसे पचाने का इंतजाम भी औषाधियो के रूप मे होता है जिसे आम भाषा मे हम मसाले कहते है।इन मसालो मे दर्दनाशक प्रतिरक्षात्मक हल्दी पिस्ता पित्तनाशक अजवाएन पाचक जीरा कलौजी वायुनाशक लहसुन जैसे हजारों-हजार तत्व मौजूद है।

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Parul Parashar 9 महीने 4 दिन पहले

the pitra paksha amaavasya should be declared as national holiday for our country to pay our respect and tribute to our ancestors who has contributed a lot and brought their blood line so far in time now. the working culture and the industry culture is keeping many people away from offering their pitraas in the traditional ways as defined in Vedas. I too work in a private company and because of less time paucity could do a little only on this day. to keep our tradition alive and to develop a sense of gratitude towards our ancestors on a proper manner we should be given a holiday on this day.

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bipin chauhan 9 महीने 4 दिन पहले

ध्यान से पढ़िए एक-एक शब्द को बहुत ध्यान से लिखा है हमने। प्रश्न यह है कि ऐसा कौनसा शब्द है जो वस्तुत: प्रकृति व शक्ति के लिएअसामान्य स्थिति में प्रायोगिक था किन्तु किसी एक व्यक्ति के द्वारा उत्पन्न किये भ्रम, विषाद, विरोधावास और विकृति के कारण आज मौलिक स्वरुप से छिन्न हो चुका है।
स्वयं इस्लाम को मानने वाले विशेषज्ञों ने ही हमें बताया है ईसा मसीह भी उनके पैगम्बर में से एक थे। उनकी किताबों में इनका वर्णन मिलता है। भविष्य पुराण में भी है और अब तो अनुसन्धान करके साक्ष्य भी उपलब्ध हो गए हैं कि ईसा मसीह भारत आए थे।
ईश्वर की संज्ञा अपनी भाषा हीब्रू में वे किस शब्द से करते थे? अब पुनः प्रयास कीजिए।
हिन्दू/आर्य/सनातन धर्म ही शाश्वत है।
अधिक जानकारी हेतु चलचित्र देखें।
संलग्न में लगी PDF में भी पढ़ें।
धर्म ही सर्वोपरि है। धर्म नहीं तो राष्ट्र, माँ, पिताः, इत्यादि सभी लोप हो जायेंगे।
धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो।

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Dinesh Shringi 9 महीने 4 दिन पहले

तुलसी, बड़ और पीपल के पेड़ हमारे समाज में आदर का भाव रखते है। इन वृक्षों की पूजा की जाती है और इनका घर के आस पास होना शुभ व अच्छा माना जाता है। इन वृक्षों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इन्हें हिंदू देवी देवताओं से जोड़ा गया। वास्तव में यह वृक्ष मानव सेवा के लिए बने है इन वृक्षों की पत्तियां, छाल और लकड़ी मानव सभ्यता के उत्थान में मदद करती है। मानव शरीर से बीमारियां खत्म करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है यह सभी वृक्ष हिंदू समाज में पूजनीय है

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Jay Singh rathore 9 महीने 4 दिन पहले

we should save our family system. government should promote this system. government's welfare schemes destroying this system cause everyone looking for welfare and he showing himself/herself as a poor people to avail government's schemes. we can be confident if we trust in our clothing sense Indian clothing, we will be confident if we believe in our local language. so we should change dressing senses in offices, in bureaucracy in Indian cinema.

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Prakash Sharma 9 महीने 4 दिन पहले

सबका साथ सबका बिकास लेकिन दुर्भाग्यवश राज्यको मंत्री मालामाल लेकिन छापामारी का पेैसा गरिब मजदुरों परिवारों चाय बागानों मजदुरों परिवारों को घर बनाने में खर्च किया जाय